सूखती मिथिला (बिहार)

कभी “तालाबों की ज़मीन” कहलाता मिथिला आने वाले समय के गंभीर पानी की कमी के संकट कि और बढ़ रहा है। 

मिथिला के तालाब सिर्फ जल-स्रोत नहीं, बल्कि एक जीवित संस्कृति, कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था और पर्यावरण संतुलन के स्तंभ हैं। उनके खत्म होने से जल-संकट का खतरा और बढ़ रहा है।

हज़ारों पारंपरिक तालाब, अतिक्रमण, कंस्ट्रक्शन, क्लाइमेट चेंज, कमज़ोर कानून-प्रवर्तन और सरकारी रोकथाम के कारण तेज़ी से सूख रहे हैं ! इसके साथ ही मखाना की खेती प्रभावित है, मछलियाँ खत्म हो रही हैं और कई इलाकों में मानसून में भी पानी की कमी बनी रहती है। इन तालाब को कैसे बचाया जाये?

एनवायरनमेंटल एक्टिविस्ट की रिपोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के डॉक्यूमेंट्स से पता चलता है कि बिहार की मौजूदा शहरी डेवलपमेंट और ड्रेनेज स्कीमों ने तालाबों जैसी छोटी वॉटर बॉडीज़ पर बुरा असर डाला है, खासकर पॉल्यूशन और फिजिकल अतिक्रमण के ज़रिए। 

कई जगह सरकारी तालाबों के अंदर निर्माण करवाया गया है। यदि अतिक्रमण और अनियंत्रित निर्माण पर रोक नहीं लगी और जलवायु परिवर्तन के अनुरूप ठोस योजना नहीं बनी, तो आने वाले दशकों में मिथिला की जल-संस्कृति लगभग समाप्त हो जाएगी।

पटना हाई कोर्ट में 2023 में कुमार अमित बनाम बिहार राज्य एवं अन्य में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए, मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति मधुरेश प्रसाद वाली डिवीजन बेंच ने पूर्वी चंपारण की ऐतिहासिक मोती झील के संरक्षण और पुनर्वास को लेकर महत्वपूर्ण आदेश जारी किया। कोर्ट ने पाया कि झील अतिक्रमण, प्रदूषण, अवरुद्ध इनलेट और प्रशासन अनियमित के कारण तेजी से नष्ट होती जा रही है, इसलिए बिहार के मुख्य सचिव को निर्देश दिया गया कि एक वरिष्ठ अधिकारी को नोडल अधिकारी बनाकर पूरे पुनरुद्धार कार्य की व्यक्तिगत निगरानी कराई जाए और हर तीन महीने में विस्तृत स्थिति रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल की जाए। कोर्ट ने पुनर्जीवन के लिए चार मुख्य कदम तय किए—पूर्ण ड्रेजिंग और डी-सिल्टेशन, सभी अवैध अतिक्रमण का हटाना, तटबंध और सार्वजनिक सुविधाओं का विकास, तथा सौंदर्यीकरण जिसमें विशेष रूप से रत्नागिरी रिचार्ज चैनल का जीर्णोद्धार और आसपास वृक्षारोपण शामिल है।

वॉटर बॉडीज़ की सुरक्षा के लिए नियम मौजूद हैं, पर लोकल अथॉरिटीज़ अक्सर गैर-कानूनी कंस्ट्रक्शन पर कोई कार्रवाई नहीं करतीं।कानून है, लेकिन उसका ग्राउंड-लेवल पर इस्तेमाल बहुत कमजोर है।कभी कम्युनिटी लेवल पर तालाबों की सफाई और रख-रखाव एक परंपरा थी, जो शहरीकरण और उपेक्षा के कारण खत्म होती जा रही है।

सरकारी योजनाएँ , जल जीवन हरियाली मिशन,  जैसी योजनाएं तालाबों के पुनर्जीवन का दावा करती हैं, पर जमीनी स्तर पर कार्यान्वयन बहुत कमजोर है। TBA (तालाब बचाओ अभियान – Talab Bachao Abhiyan) एक प्रमुख जन आंदोलन और अभियान है जो बिहार और अन्य राज्यों में सक्रिय है, लेकिन प्रयास कारगर नहीं साबित हो रहे हैं। 

मिथिला वासियों के लिये तालाब मिथिला की संस्कृति, अनुष्ठानों और ग्रामीण जीवन का केंद्र रहे हैं। उनके खत्म होने से हमारा सांस्कृतिक धरोहर भी खतरे में पड़ रहा है!

 

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